COME FRONT WITH THIS TOPIC WHICH USUALLY ALL AVOID TO RIGHT
मैं हर्षिता लिखती बेबाक ,जीती बेबाक, ज़िन्दगी बेबाक
डरते वो है जो गलत हो , गलत ना बोलते ना सेहते है हम
नेकी की मशाल जो अंदर थी , अब प्रेम भाव से लोगों में जलाते है हम
गलत ने गलत जाना सही ने सही जिसने जैसे जाना वैसा ही पहचाना, ना डरते बा दबते है हम
निडर होकर जीते , दिलो ना खेला करते है हम
हर्षिता की क़लम में एक आग नज़र आती हैं
जो जलाती नहीं , दिलो मे एक नई उम्मीद जाता देती हैं
COME ACROSS WITH SOME बेनाम के नय रिश्ते जो HIPPOCRATES SOCIETY की आंखो दोगुनी खोल देते हैं
आज भाई बहन भी साथ जा रहे हो तो एक अजीब सी नज़र से देखते है
आज चाहे SINGLE MOTHER हो या कोई पीड़िता या कोई भी ऐसा रिश्ता जो अधूरा हैं
गलत नज़रों से देखने वा लो की अगर कोई अनकहे अल्फ़ाज़ से आंखों में अंगार से ,आंखे नोच लेने की हिम्मत रखता या रखती हैं तो नहीं चालू या चालबाज या तेज़ तर्रार , या proud ya egotistic ya batmeez का तमगा मिल जाता हैं
क्या सुकून इंसान को ही चाइए क्या ये इंसान नहीं ?
क्या कहती क्या नहीं कश्ती हमारी है तो पतवार भी ख़ुद बनेंगे, रिश्ते हमारे है या टूटे या बिखरे ,अधूरे या पूरे
ख़ुद को मिटा कर या SOCIETY PRESSURE में हम क्र्यूं जाएंगे,
GOD GIVES FREE OXYGEN TO EVERY ONE
IF GOD DIDN'T DISCRIMINATION TO ANY WHO ARE YOU TO POINT FIGURE TO OTHER LIFE
IF YOU LOVE YOURSELF AS YOU'RE WHY WE CAN'T MAKE LOVE OURSELVES FOE BEING SELF RESPECTED LIVE WITH RESPONSIBLITY BEING LIVE WITH DIGNITY
Written by Harshita ✍️
#Jazzbaat
Disability
विकलांग को देखकर भावुक होता इंसान है पर हर एक नहीं होता ऐसा ये एहसास हैं
पागलपन या मंदबुद्धि या अधूरा होता ,पर अधूरा होता भी तो कहीं न कहीं वो ख़ुद में पूरा होता इंसान ही हैं
सोच या सच का सामना करता वो रोज़ ख़ुद से एक नई जंग लड़ता , दुनियां से कितनी लड़ाई करता मन को समझता एक इंसान हैं
दुख होता देख कर आज के या कभी भी इतिहास के पन्नों को तलाशे चाहे वो किंनर हो या कोई विकलांग वो भी तो पहले इंसान हैं
प्रेम के प्रतीक हर रिश्ते को अटूट वादे से मुकर कर वो निभाते ,विश्वास की डोर कलाई में को भी बंद वाते इंसान हैं
आंखो मे चमक कुछ कर गुजर ने की , प्यार से मुस्कान देते ,दया नहीं प्ररेणा का प्रतीक बनते इंसान हैं
विकलांग लोग नहीं इंसान की सोच होती है,
चाहे कहीं भी देख सकते है , बच्चियों के साथ घिनौना अपराध करने वाले का दिमाग़ विकलांग नहीं आंखे या नजरिया विकलांग होता है क्या इंसान ऐसा होता हैं?
OLD AGE HOME ना होते अगर सोच विकलांग ना हो ती ,खेलते बचपन की धज्जियां ना उड़ती क्या इंसान यहीं है?
इज्ज़त से खिलवाड़ ना होता अगर सोच विकलांग ना होती क्या इंसान ऐसा होता है?
दर्दं बेदर्दं ना होता अगर सोच विकलांग ना होती क्या इंसान ऐसा होता हैं?
आज सगे भाई , बाप पर भरोसा उठता जा रहा है , भाई भाई , कोम की मिसालें देकर फ़र्ज़ कर्ज़ से मुंह मोड़ना जा रहा है क्या इंसान ऐसा होता है?
हर इन्सान एक जैसा नहीं होता ,पर क्या रिश्तों को कटघरे के लाकर खड़ा देना क्या इंसान ऐसा होता हैं?
खुदगर्ज़ी की मर्यादा लांघकर ख़ुद को गुरूर में ख़ुदा हमसे बढ़कर कुछ नहीं ये सोच जीवन में साक्षी बनाकर जीने वाले , ये इंसान होते हैं?
सक्षम मानती हूं, मैं उनको जो अधुरे होकर भी पूरे होते है यहीं इंसान होते हैं
किसी को ACID ATTACK से या जल जाने से घिनौना समझने वाले , उनको उस जगह पर ला कर खड़े करने वाले भी तो घिनौने इंसान हो होते है , क्या ये इंसान इंसानियत जिंदा कर मामूली इंसान की ज़िन्दगी क्यूं नहीं जी सकते हैं ?
HUMAN TRAFFICKING का नाम सदियों से नहीं सामने आया पर, देखा जाए तो बाल विवाह , ये कोठे पर जाना या राजा महा राजायो के वक्त से देखा जा सकता हैं
एक राजा की सैकड़ों रानिया या मोल पर कई रंगों से सज़ी जाती रंगीन शामो को सजाती थी ये लड़कियां,
Gay शब्द आज सामने आया पर इतिहास के पन्नों को उठा कर देखिए , इन रिश्तों को छुपाया जाता रहा ,आज एक हर रिश्ते का नया नाम सामने आता है SOCIETY HIPPOCRATES ना जायज़ का नाम दे देती है, क्या तब इंसानियत नहीं थी या आज इंसानियत ख़त्म होती नज़र आती हैं क्या?
इंसान ये नहीं को खुल कर बात अपनी दिल की बात , अपने बनाएं रिश्ते को सामने रखता हैं , छुपा कर तो पाप ही किया जाता हैं सामने लायो तो आशिल या नजायज़ कहलवाया जाता हैं , क्या बताना भी गुनाह हो गया हैं,
यहीं स्वाभिमान से जीना की हमारी पहचान क्या है ये बताने मे या EXCEPT करने में माजरा क्या है, क्या यही इंसान है?
नजरिया विकलांग हो तो क्या कर सकते हैं , अब नहीं तो कब बदलोगे , SOCIETY को दोष देना बंद करो
SOCIETY HIPPOCRATE नहीं SOCIETY हमसे हैं
हमने बनाया है ये सोच ख़ुद को बदलो सोच बदली नज़र आयेगी , RESPECT की उम्मीद ख़ुद से शुरू करो RESPECT कमाई जाएंगी
IF YOU EXCEPT YOURSELF WHO YOU'RE
WHY NOT YOU EXCEPT WHAT THEY ARE?
Yes these human behaviour makes society sick , our own thoughts process makes us who we are today,
LOOKING FORWARD TO BEING SEE LOT OF CHANGES IN MIND SET OF HUMAN TENDENCIES
BE BOLD BE BRAVE
BE EXCEPTABLE BE EXCEPTIONAL
©️ जज़्बात ए हर्षिता
4Dec, 2020







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