Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
अजीब सी गुज़र रही है ज़िन्दगी।
कभी गर्दिश के सितारों सी बहलाती।
कभी मिट्टीं में मिला देती है ज़िन्दगी।
सोचती हूं कुछ क़िस्से कह दूं पर किससे कहूं।
सोचती हूं दिल को बेहकालूं पर बेहकायूंं किसको।
क़िस्से हिस्सों में कटें फंटें कुछ बाटें पुराने ज़माने ,
के दरीचों में दिखते कहीं दूर फीकीं सी स्याहीं से लिखें कुछ ख़त।
बिखरते भूलीं बिसरी यादें पुरानी आदतें याद दिलाते रहे।
यूं खतो में भीनी सी सूखें गुलाब के पंखुड़ी भी उड़ती नज़र आई।
पुरानी यादों के महल सजाएं थे वो भी साथ ले आई।
कसमें वादों की चिरागों की लौं में ली थी हमने कसमें।
जुगनू भी चांदनी रात में सोने सा पिघलती रोशनीं में।
अकेले ख़यालो की बारिश में भीगती रही।
गुनगुनाती रही अपने हाथ में कुछ ख़तों के कोने को
मरोड़ती रही।।
अपनी आंखो को खुली रखना चाहती थी।
पर उफ़ ये यादों के साथ अश्रुं की माला।
भी साथ ले आती।बहुत याद आती ।
ज़िन्दगी उफ़ ये ज़िन्दगी ।
#Jazzbaat
अजीब सी गुज़र रही है ज़िन्दगी।
कभी गर्दिश के सितारों सी बहलाती।
कभी मिट्टीं में मिला देती है ज़िन्दगी।
सोचती हूं कुछ क़िस्से कह दूं पर किससे कहूं।
सोचती हूं दिल को बेहकालूं पर बेहकायूंं किसको।
क़िस्से हिस्सों में कटें फंटें कुछ बाटें पुराने ज़माने ,
के दरीचों में दिखते कहीं दूर फीकीं सी स्याहीं से लिखें कुछ ख़त।
बिखरते भूलीं बिसरी यादें पुरानी आदतें याद दिलाते रहे।
यूं खतो में भीनी सी सूखें गुलाब के पंखुड़ी भी उड़ती नज़र आई।
पुरानी यादों के महल सजाएं थे वो भी साथ ले आई।
कसमें वादों की चिरागों की लौं में ली थी हमने कसमें।
जुगनू भी चांदनी रात में सोने सा पिघलती रोशनीं में।
अकेले ख़यालो की बारिश में भीगती रही।
गुनगुनाती रही अपने हाथ में कुछ ख़तों के कोने को
मरोड़ती रही।।
अपनी आंखो को खुली रखना चाहती थी।
पर उफ़ ये यादों के साथ अश्रुं की माला।
भी साथ ले आती।बहुत याद आती ।
ज़िन्दगी उफ़ ये ज़िन्दगी ।

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