Written by Harshita ✍️✍️
दर्द क्या है।
क्या है दर्दं।
दर्दं को उल्टा करो या सीधा एक समान ही रहता है।
बहुत अचुका एहसास है दर्दं का।
चेहरा पर गेहरी उदासी छोड़ जाता है ये दर्दं।
कड़वे घुट भी पीला जाता है ये दर्दं।
ज़िन्दगी का हिस्सा समझ अपनापन भी जताता है ये दर्द।
अच्छे के साथ अच्छा बुरे के साथ बुरा भी करवाता है ये दर्द।
अपनी हस्ती मिटने नहीं देता है ये दर्द।
अनकही बातें को दिल में उजागर कर।
ज्वाला मुखीं भड़कता है ये दर्दं।
बिन छुएं बहुत अंदर तक घुंसा।
तीर की खरोंच कर निकाल देता है ये दर्दं।
पागलपन सवार कर पतवार भी बन जाता है ये दर्दं।
ख़ुशी को कोसो दूर धुंध में ।
धुआं उठा कर दूसरे को बेवकूफ़।
बना खुशियों छीन लेता है ये दर्द।
रात के अंधेरे सन्नाटें में ख़ुद।
को अकेला कर रुलवता है ये दर्दं।
अपने ऊपर हावीं कर देता है ये दर्दं।
अब दर्दं को महसूंस करवा दो।
तूं हमे नहीं डरा सकता।
सख़्त ज़रूरत है खुशियों।
की ज़िन्दगी की उलझनों से।
दूर भगाना है तुझे मज़बूत बन।
दर्द को मज़बूर कर देना है ये दर्दं।
पीर फकीर रहमान मालिक रहमत बख़्शी।
हम पर तेरे दर सर झुकाएं झोली फैलाएं।
डर को तेरी रहमत डराएंगी।
दर्द क्या है।
क्या है दर्दं।
दर्दं को उल्टा करो या सीधा एक समान ही रहता है।
बहुत अचुका एहसास है दर्दं का।
चेहरा पर गेहरी उदासी छोड़ जाता है ये दर्दं।
कड़वे घुट भी पीला जाता है ये दर्दं।
ज़िन्दगी का हिस्सा समझ अपनापन भी जताता है ये दर्द।
अच्छे के साथ अच्छा बुरे के साथ बुरा भी करवाता है ये दर्द।
अपनी हस्ती मिटने नहीं देता है ये दर्द।
अनकही बातें को दिल में उजागर कर।
ज्वाला मुखीं भड़कता है ये दर्दं।
बिन छुएं बहुत अंदर तक घुंसा।
तीर की खरोंच कर निकाल देता है ये दर्दं।
पागलपन सवार कर पतवार भी बन जाता है ये दर्दं।
ख़ुशी को कोसो दूर धुंध में ।
धुआं उठा कर दूसरे को बेवकूफ़।
बना खुशियों छीन लेता है ये दर्द।
रात के अंधेरे सन्नाटें में ख़ुद।
को अकेला कर रुलवता है ये दर्दं।
अपने ऊपर हावीं कर देता है ये दर्दं।
अब दर्दं को महसूंस करवा दो।
तूं हमे नहीं डरा सकता।
सख़्त ज़रूरत है खुशियों।
की ज़िन्दगी की उलझनों से।
दूर भगाना है तुझे मज़बूत बन।
दर्द को मज़बूर कर देना है ये दर्दं।
पीर फकीर रहमान मालिक रहमत बख़्शी।
हम पर तेरे दर सर झुकाएं झोली फैलाएं।
डर को तेरी रहमत डराएंगी।

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